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Wednesday, June 10, 2015

जितेंद्र तोमर के बहाने...

मंत्री बनने के लिए साम-दाम-दंड-भेद का फॉर्मुला अब ओल्ड फैशन बन गया है, नया ट्रेंड है त्याग का। नेता भोगी नहीं जोगी दिखना चाहते हैं। उच्च पद पाने के लिए तुच्छ वस्तुओं का त्याग करना ही पड़ता है। दिल्ली से लेकर बिहार तक यही फैशन है।

वो ज़माना लद गया जब लोग जेल में बैठे-बैठे नेता बनने की सोचते थे। अब संस्कृति ग्लोबल हो चुकी है। भारतीय तहजीब की चिंदी चिंदी करके आप महान नहीं बन सकते। ये तो साधू-संयासियों का देश है। यहां की परंपरा ही रही है त्याग की। संयम तो इतना सिखाया गया है कि वानप्रस्थ में लोग धन-दौलत और संयास आश्रम में बीवी तक का त्याग कर देते थे।

कुछ ऐसे ही ज्ञान की प्राप्ति दिल्ली के कानून मंत्री जितेंद्र तोमर को पुलिस हिरासत में हुई। संभव है द्वापर युग के बाद कृष्ण कल दोबारा जेल में अवतरित हुए होंगे और अर्जुन रूपी तोमर को उपदेश दिया होगा। तोमर ने बिना एक मिनट की देरी किए पुलिस कस्टडी से ही अपना इस्तीफा अरविंद केजरीवाल तक पहुंचा दिया। कहा मैं सच्चा हूं, इस्तीफा तो नैतिक आधार पर दिया है। यकीन मानिए, त्याग, नैतिकता और संयम का ऐसा संगम हर बरस इलाहाबाद में लगने वाले माघ मेले में भी आपको नहीं दिखेगा।

कुछ ऐसी ही विरक्ति लालू को भी हो गई है राजनीति से। सत्ता सुख त्याग कर सन्यासी बन गए हैं। कहते हैं मुझे कुर्सी का लोभ नहीं रहा। नीतीष को ही दे दो। मैं तो नीलकंठ बनकर ज़हर पीना चाहता हूं।

अब वजहों में अगर ना उलझें तो आम और लीची का त्याग तो मांझी ने भी किया है। लालू अगर नीलकंठ बनकर ज़हर पी रहे हैं तो मांझी भी कोई मैंगो शेक या लीची जूस नहीं नहीं गटक रहे। फिर त्याग तो त्याग है, कंपेयर करना ठीक नहीं।

सबसे ज्यादा गजब बहनजी ने ढाया। एक वक्त था जब मायावती अंबेडकर को गोद में लेकर बैठ गई थीं। कोई होलिका में आग भले ही दे लेकिन अंबेडर छूटने नहीं चाहिए। चारों तरफ लक्ष्मण रेखा भी खींच दी थी ताकि दूसरी पार्टीयां अंदर ना आ सकें। अंबेडकर को रावण रूपी कोई दूसरी पार्टी हर ले गई तो फिर कौन हनुमान आएगा इज्जत बचाने, लेकिन जब से बीजेपी ने अंबेडकर हरण किया है मायावती त्याग की मूर्ती बन गई हैं। दबी जुबान अंबेडकर को अपना ज़रूर बताती हैं पर जानती हैं सियासी फायदा अब त्याग में है।

वैसे त्याग में डेब्यू करने वाली पहली नेता सोनिया गांधी थीं जिन्होंने अंतरात्मा की आवाज़ सुन 2004 में प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ दी थी। उस वक्त पूरे देश में हाहाकार और जयजयकार एक साथ हो गई थी। उसके बाद तो जैसे कांग्रेस का त्याग के फॉर्मूले पर कॉपीराइट हो गया। राजस्थान छोड़ा, महाराष्ट्र छोड़ा, हरियाणा छोड़ा......पंजाब, आंध्रप्रदेश और कश्मीर में जो थोड़ी-बहुत गठबंधन की सरकार थी वो भी छोड़ दी।

हां, बीजेपी इस मामले में ज़रूर चालू निकली। खुद तो त्याग करती नहीं लेकिन उपदेश ऐसे देती है कि अच्छे-अच्छों के सिर फिर जाएं। त्याग की ऐसी घुट्टी मोदी ने जनता को पिलाई कि आम आदमी ने सिलेंडर की सब्सिडी तक छोड़ दी।

वाकई, हर तरफ त्याग ही त्याग दिख रहा है।

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